हिन्दी उपन्यास का विकास
हिन्दी उपन्यास का विकास (Hindi Upanyas) हिन्दी उपन्यास के इतिहास का सामान्यतः तीन चरणों में विभाजन किया जाता है- 1. प्रेमचंद पूर्व उपन्यास 2. प्रेमचंदयुगीन उपन्यास 3. प्रेमचंदोत्तर उपन्यास। प्रेमचंद पूर्व हिन्दी उपन्यास 1882 ई. से लगभग 1916 ई. तक के युग को हिन्दी उपन्यास में प्रेमचंद पूर्व युग के नाम से जाना जाता है। यह हिन्दी उपन्यास के विकास का आरंभिक काल है जहाँ मध्यकाल के आदर्शवाद तथा रोमानियत के तत्त्व धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे और यथार्थवाद के तत्त्व बढ़ रहे थे। इस युग की वास्तविक भूमिका एक पृष्ठभूमि के रूप में है जिसने परिपक्व उपन्यास लेखन को आधार प्रदान किया। इस समय तीन प्रकार के उपन्यास लिखे गए- 1. सुधारवादी उपन्यास 2. मनोरंजनपरक उपन्यास 3. ऐतिहासिक उपन्यास। (1) सुधारवादी या नैतिक उपदेशात्मक उपन्यास:- ये उपन्यास मूलतः धर्म सुधार तथा नवजागरण आंदोलन की प्रेरणा से लिखे गए हैं। इन्हें लिखने वालों में मुख्यतः भारतेन्दु मण्डल के कुछ लेखक व श्रद्धाराम फिल्लौरी जैसे तत्कालीन लेखक शामिल हैं। इन्होंने सांस्कृतिक, सामाजिक पतन व उससे बचाव के उपायों पर काफी लिखा। इसके अतिरिक्त, भारतीय नारी