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*संधिपद-विच्छेद-जिन स्वरों में संधि हुई* दर्शनार्थ-दर्शन + अर्थ-अ + अ= आ (दीर्घ) दावाग्नि-दाव + अग्नि-अ + अ= आ (दीर्घ) दावानल-दाव + अनल-अ + अ= आ (दीर्घ) देवर्षि-देव + ऋषि-अ + ऋ= अर् (गुण) देवेश-देव + ईश-अ + ई= ए (गुण) देवेन्द्र-देव + इन्द्र-अ + इ= ए (गुण) देवागमन-देव + आगमन-अ + आ= आ (दीर्घ) देव्यागम-देवी + आगम-ई + आ= या (यण) दूतावास-दूत + आवास-अ + आ= आ (दीर्घ) देशाटन-देश + अटन-अ + अ= आ (दीर्घ) दीपावली-दीप + अवली-अ + अ= आ (दीर्घ) द्रोणाचार्य-द्रोण + आचार्य-अ + आ= आ (दीर्घ) दंडकारण्य-दंडक + अरण्य-अ + अ= आ (दीर्घ) दक्षिणायन-दक्षिण + अयन-अ + अ= आ (दीर्घ) दध्योदन-दधि + ओदन-इ + ओ= यो (यण) दर्शनेच्छा-दर्शन + इच्छा-अ + इ= ए (गुण) दशानन-दश + आनन-अ + आ= आ (दीर्घ) दयानंद-दया+ आनंद-आ + आ= आ (दीर्घ) दानवारि-दानव + अरि-अ + अ=आ (दीर्घ) दासानुदास-दास + अनुदास-अ + अ=आ (दीर्घ) दिनांक-दिन + अंक-अ + अ=आ (दीर्घ) दिनांत-दिन + अन्त-अ + अ=आ (दीर्घ) दिव्यास्त्र-दिव्य + अस्त्र-अ + अ=आ (दीर्घ) दीक्षान्त-दीक्षा + अन्त-आ + अ= आ (दीर्घ) दीपोत्सव-दीप + उत्सव-अ + उ= ओ (गुण) दूरागत-दूर + आगत-अ + आ= आ (दीर्घ) देवालय-दे

हिन्दी उपन्यास का विकास

  हिन्दी उपन्यास का विकास  (Hindi Upanyas) हिन्दी उपन्यास के इतिहास का सामान्यतः तीन चरणों में विभाजन किया जाता है- 1. प्रेमचंद पूर्व उपन्यास 2. प्रेमचंदयुगीन उपन्यास 3. प्रेमचंदोत्तर उपन्यास। प्रेमचंद पूर्व हिन्दी उपन्यास 1882 ई. से लगभग 1916 ई. तक के युग को हिन्दी उपन्यास में प्रेमचंद पूर्व युग के नाम से जाना जाता है। यह हिन्दी उपन्यास के विकास का आरंभिक काल है जहाँ मध्यकाल के आदर्शवाद तथा रोमानियत के तत्त्व धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे और यथार्थवाद के तत्त्व बढ़ रहे थे। इस युग की वास्तविक भूमिका एक पृष्ठभूमि के रूप में है जिसने परिपक्व उपन्यास लेखन को आधार प्रदान किया। इस समय तीन प्रकार के उपन्यास लिखे गए- 1. सुधारवादी उपन्यास 2. मनोरंजनपरक उपन्यास 3. ऐतिहासिक उपन्यास। (1) सुधारवादी या नैतिक उपदेशात्मक उपन्यास:- ये उपन्यास मूलतः धर्म सुधार तथा नवजागरण आंदोलन की प्रेरणा से लिखे गए हैं। इन्हें लिखने वालों में मुख्यतः भारतेन्दु मण्डल के कुछ लेखक व श्रद्धाराम फिल्लौरी जैसे तत्कालीन लेखक शामिल हैं। इन्होंने सांस्कृतिक, सामाजिक पतन व उससे बचाव के उपायों पर काफी लिखा। इसके अतिरिक्त, भारतीय नारी

हिन्दी हमारी शान

  ✅ विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बनी हिंदी   ✅ हाल ही में एथनोलॉग द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार हिंदी विश्व में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन गयी है। वर्तमान में 637 मिलियन लोग हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं। इस सूची में दूसरे स्थान पर चीनी मंदारिन भाषा है, इसे 1120 मिलियन लोग बोलते हैं। अंग्रेजी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, 1268 मिलियन लोग अंग्रेजी भाषा का उपयोग करते हैं। ✔️हिंदी भाषा हिंदी भारत के प्रमुख भाषा है, देश की लगभग 40% जनसँख्या इस भाषा का उपयोग करती है। यह भारतीय-यूरोपीय भाषा परिवार की हिन्द-आर्य शाखा से सम्बंधित है। 2011 की जनसँख्या के अनुसार 43.63% भारतीय हिंदी भाषा का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं। भारत में हिंदी भाषा को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर बोला जाता है। इसके अलावा विश्व के कई अन्य देशों जैसे पाकिस्तान, मॉरिशस, त्रिनिदाद और सूरीनाम में भी हिंदी भाषा बोली जाती है। अंग्रेजी और फीजियन के साथ हिंदी फिजी की राष्ट्रीय भाषा भ

मैथिलीशरण गुप्त एवं काव्य रचनाएँ

                  मैथिलीशरण गुप्त “जाति-धर्म या सम्प्रदाय का नहीं भेद-व्यवधान यहां सबका स्वागत, सबका आदर सबका सम सम्मान यहां” ‘मैथिलीशरण गुप्त’ जन्म : 3 अगस्त 1886 चिरगाँव, झाँसी (उत्तर प्रदेश), ब्रिटिश भारत। मृत्यु : 12 दिसंबर 1964 साहित्यक उपनाम : 'दद्दा'। व्यवसाय व कार्य :  कवि, राजनेता, नाटककार, अनुवादक। विशेषज्ञता : हिंदी साहित्य व खड़ी बोली के काव्य रचनाकार।  (आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से खड़ी बोली को अपनी काव्य रचना का माध्यम बनाया)   प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह (वर्ष 1910) : “रंग में भेद” ।  अनुवादक : बंगाली काव्यग्रंथ "मेघनाथ वध" को ब्रज भाषा में “ब्रजांगना” नाम से (इंडियन प्रेस द्वारा पब्लिश) तथा संस्कृत ग्रंथ "स्वपनवासवदत्ता"‌ का अनुवाद किया। उल्लेखनीय रचनाएं : भारत – भारती, पंचवटी,  सिद्धराज,  साकेत,  यशोधरा, जयद्रथ वध, विश्ववेदना इत्यादि। सम्मान : • महात्मा गांधी द्वारा 'राष्ट्रकवि' की पदवी दी गयी  वर्ष 1932 ।   • हिन्दुस्तान अकादमी पुरस्कार (साकेत के लिए,1935) । • मंगलाप्रसाद पुरस्कार : साकेत के लिए (हिन्दी साहित्य सम्मेलन

पठन और वाचन कौशल

           1. वाचन  कौशल 🇮🇳 वाचन कौशल(Vachan Kaushal)  🇮🇳 ➡️वाचन या बोलना भाषा का वह रूप है जिसका सबसे अधिक प्रयोग होता है। ➡️भावों और विचारों की अभिव्यक्ति का साधन साधारणतया उच्चारित भाषा ही होती है। ➡️जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वाचन\ बोलने की आवश्यकता होती है।  व्यक्ति का सबसे बड़ा आभूषण उसकी मधुर वाणी है। ➡️वाचन एवं लेखन कौशल को अभिव्यंजनात्मक \  उत्पादक कौशल कहते हैं| 🌹🌹 वाचन कौशल का महत्व 🌹🌹 ➡️विचारों के आदान-प्रदान के लिए। ➡️सरल , स्पष्ट एवं सहज बातचीत के लिए। मौखिक भाषा के प्रयोग में कुशल व्यक्ति, अपनी वाणी से जादू जगह सकता है। ➡️सामाजिक जीवन में सामंजस्य तथा सामाजिक संबंधों के मुद्रण बनाने में वाचन कौशल प्रमुख भूमिका में होती है।    🌹🌹 वाचन कौशल के उद्देश्य 🌹🌹 ➡️बालकों का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। ➡️कक्षा में छात्रों को उचित स्वर, उचित गति के साथ बोलना सिखाना। ➡️छात्रों को सही व्याकरण वाली भाषा का प्रयोग करना सिखाना। ➡️कक्षा में छात्रों को लिसेन को ठोकर अपने विचार व्यक्त करने के योग्य बनाना। ➡️बोलने में विराम चिन्हों का ध्यान रखना  सिखाना। छात्रों को धारा प्रवाह,

पत्र-लेखन (Part -3)

(5) व्यापारिक पत्र व्यापारिक पत्र वैयक्तिक पत्रों की तुलना में काफी भिन्न होते हैं। व्यापारिक पत्रों की भाषा औपचारिक होती है। इनमें द्विअर्थी एवं संदिग्ध बातों का स्थान नहीं होता। ये पत्र किसी भी व्यापारिक संस्थान के लिए आवश्यक होते हैं। व्यापारिक पत्र किन्हीं दो व्यापारियों के बीच व्यापारिक कार्य हेतु लिखे जाते हैं। एक व्यवसायी तभी सफल हो सकता है, जब वह दूसरे व्यवसायी के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए। सम्बन्धों को मधुर बनाए रखने एवं व्यापार को कुशलतापूर्वक बढ़ाने के लिए पत्रों को लिखने की आवश्यकता होती है। व्यापारिक पत्र माल का मूल्य पूछने सम्बन्धी जानकारी लेने, बिल का भुगतान करने, बिल की शिकायत करने, साख बनाने, समस्या बताने, सन्दर्भ लेने आदि के विषय में लिखे जाते हैं। व्यापारिक पत्रों की उपयोगिता व्यापारिक पत्र एक व्यवसायी के दृष्टिकोण से बहुत उपयोगी होते हैं। इन पत्रों से समय की बचत तो होती ही है, धन भी कम खर्च होता है। ये पत्र व्यापार का प्रचार एवं विज्ञापन का कार्य भी करते हैं। व्यवसायिक पत्राचार के द्वारा व्यापार के सभी कार्यों के आधार पर भेजे गए पत्रों का रिकॉर्ड तैयार कर दिया जाता है। व